भारतीय दर्शन |
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चार्वाक दर्शन एवं इसका इतिहास Charvak philosophy and its history |
चार्वाक दर्शन एवं इसका इतिहास Charvak philosophy and its history
चार्वाक दर्शन एक नास्तिक व अनीश्वरवादी दर्शन है। यह दर्शन ईश्वर के साथ-साथ वेदों इत्यादि को भी नहीं मानता। चार्वाक दर्शन के संस्थापक के रूप में बृहस्पति आचार्य को माना जाता है। चार्वाक बृहस्पति आचार्य के शिष्य थे, जिन्होंने इस दर्शन का प्रचार-प्रसार किया। जिसके चलते चार्वाक दर्शन प्रसिद्ध हुआ एवं इसी नाम से जाना जाने लगा।
प्राचीन भारतीय दर्शन में जड़वाद के लिए चार्वाक शब्द का प्रयोग होता था। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि चार्वाक एक ऋषि थे, जिन्होंने जड़वाद का प्रतिपादन किया और उन्हीं के अनुयायी चार्वाक कहलाए। इस प्रकार जड़वाद का दूसरा नाम चार्वाक हो गया। कुछ अन्य विद्वान् मानते हैं कि चार्वाक जैसा कोई व्यक्ति नहीं था।
चार्वाक शब्द चर्च धातु से बना है, जिसका अर्थ चबाना या भोजन करना है। चूँकि चार्वाकी खाने-पीने, ऐश्वर्य-आनन्द आदि पर बल देते थे, इसी कारण चार्वाक नाम पड़ा। कुछ अन्य विद्वान् मानते हैं कि चार्वाकों के वचन बहुत मीठे होते थे, इसी कारण ये चार्वाक कहलाए। चारु का अर्थ ही सुन्दर होता है।
चार्वाक दर्शन का सबसे प्राचीन नाम लोकायतन है, क्योंकि यह दर्शन लोगों में आयत अर्थात् फैला हुआ है, इसी कारण जड़वाद को लौकायतिक भी कहते हैं। इस दर्शन को लोकायतनवादी, रसवादी, अनीश्वरवादी, नास्तिक, भौतिकवादी, भोगवादी आदि दर्शनों के नाम से जानते हैं।
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