जैन दर्शन में सत्त की अवधारणा
भारतीय दर्शन |
||||
जैन दर्शन में सत्त की अवधारणा |
जैन दर्शन में सत्त की अवधारणा
जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक पदार्थ में सत् और असत् दोनों ही अंग
विद्यमान रहते हैं। एक वस्तु अन्य वस्तु में रूपान्तरित हो सकती है, रूपान्तरित
वस्तु अन्य वस्तु में बदल सकती है। जैन दर्शन उत्पाद, नाश और
नित्यता से युक्त पदार्थ को सत् मानता है, जो पदार्थ या
वस्तु ऐसी नहीं है, वह उसे असत् मानता है।
------------
Comments
Post a Comment