जैन दर्शन एक सामान्य परिचय
भारतीय दर्शन |
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जैन दर्शन एक सामान्य परिचय |
जैन दर्शन एक सामान्य परिचय
भारतीय दर्शन में जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस धर्म की गिनती श्रमण दर्शन में होती है। यह ऐतिहासिक काल की दृष्टि से बौद्ध धर्म से पहले आता है। दोनों ही धर्मों की स्थापना छठी शताब्दी में हुई। इस प्रकार ये दोनों दर्शन समकालीन हैं। अधिकांश आधुनिक विद्वान् जैन धर्म का प्रवर्तक वर्धमान महावीर को मानकर उसका प्रारम्भ छठी शताब्दी ई. पू. में मानते हैं। जबकि जैन मान्यता के अनुसार महावीर चौबीस तीर्थंकरों में से अन्तिम अर्थात् चौबीसवें तीर्थंकर थे।
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे, परन्तु उन्होंने धर्म के संवर्द्धन, सुधार, प्रचार और प्रसार में विशेष योगदान दिया। जैन शब्द की उत्पत्ति जिन से हुई है। जिन शब्द संस्कृत की 'जि' धातु से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है-जीतना। इस व्युत्पत्ति के आधार पर जिन वह है, जिसने अपने स्वभाव या मनोवेगों पर विजय प्राप्त कर ली है। 'जिन' के अनुयायी ही जैन कहलाते हैं। जैन धर्म के अनुयायी अपने धर्म प्रचारकों को 'तीर्थंकर' कहते हैं। तीर्थंकर सांसारिक बन्धनों से मुक्त हो चुके होते हैं। इन्हें आदरणीय पुरुष भी कहा जाता है। इनके बताए मार्ग पर चलकर मनुष्य बन्धनमुक्त हो जाता है।
महावीर स्वामी का परिचय
महावीर स्वामी का जन्म 599 ई. पू. में वज्जि संघ के अन्तर्गत कुण्डग्राम के ज्ञातृक क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ के महल में हुआ। इनके बचपन का नाम वर्द्धमान था। इनकी माता का नाम त्रिशला था। महावीर, माता-पिता की मृत्युपर्यन्त उनके साथ ही रहे। इन्होंने भी 30 वर्ष की अवस्था में ही संन्यास ले लिया और 12 वर्ष की कठोर तपस्या करके ज्ञान प्राप्त किया, तब ये महावीर या 'जिन' कहलाए। कर्म बन्धन की ग्रन्थि खोल देने के कारण इन्हें निग्रन्थ भी कहा जाता है। 527 ई. पू. में पावापुरी में इन्होंने देह का त्याग किया। जैन धर्म में दो सम्प्रदायों का उल्लेख मिलता है-श्वेताम्बर एवं दिगम्बर। दोनों में मूल सिद्धान्तों का भेद नहीं है वरन् गौण बातों को लेकर ही भेद है। भद्रबाहु के अनुयायी दिगम्बर एवं स्थूलभद्र के अनुयायी श्वेताम्बर कहलाए। दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी नग्न रहते हैं, वे किसी भी प्रकार का वस्त्र धारण नहीं करते हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी सफेद वस्त्र धारण करते हैं, ये कुछ उदार होते हैं।
जैन साहित्य
साहित्य साहित्यकार
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तत्त्वार्थाधिगम -----
उमास्वामी
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न्यायावतार ----- सिद्धसेन दिवाकर
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षड्दर्शन समुच्चय --- हरिभद्रकृत
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षड्दर्शन विचार ----
मेरुतुंग
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पंचास्ति कायसार ---- कुन्दकुन्दाचार्य
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जैन श्लोक वर्तिक -- विद्यानन्द
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आत्मानुशासन ----
गुणभद्र
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द्रव्य संग्रह ---- नेमिचन्द्र
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स्याद्वाद् मंजरी --
मल्लिषेण
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