तिब्बती बौद्ध दर्शन

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तिब्बती बौद्ध दर्शन

तिब्बती बौद्ध दर्शन

      कुषाण शासक कनिष्क के काल में चतुर्थ बौद्ध सम्मेलन कश्मीर के कुण्डलवन में हुआ था। जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी। इस सम्मेलन के उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। इसी सम्मेलन में बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों महायान तथा हीनयान में बँट गया था। महायान बौद्ध धर्म भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी फैला। तिब्बती बौद्ध धर्म भी महायान बौद्ध धर्म का ही एक रूप है। तिब्बती बौद्ध धर्म पर वज्रयान (तान्त्रिक पद्धति) का भी प्रभाव देखा जा सकता है।

      तिब्बती बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे काफी प्रसार हुआ, जिसमें मंगोल शासक कुबलई खान की भी अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका थी, क्योंकि इसका साम्राज्य विस्तार बहुत ही अधिक था। तिब्बती बौद्ध धर्म के अन्तर्गत चार प्रमुख शाखा हैं-

  1. निमिंगमा,
  2. काग्यू,
  3. शाक्य और
  4. गेलुग

      तिब्बत में भारत के संस्कृत बौद्ध ग्रन्थों का पहली बार राजा सोंगत्सान्पो गम्पो के शासनकाल में तिब्बती भाषा में अनुवाद किया गया। इसी समय तिब्बती लेखन प्रणाली शास्त्रीय तिब्बती भाषा का भी विकास होने लगा। 8वीं शताब्दी में राजा ट्रिसॉन्ग डेट्सन ने इसे राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में स्थापित किया।

      ट्रिसॉन्ग डेट्सन ने भारतीय बौद्ध विद्वानों को अपने दरबार में आमन्त्रित किया जिनमें पद्मसम्भव प्रमुख थे। पद्मसम्भव को तिब्बती बौद्ध धर्म की सबसे पुरानी परम्परा निंगमा (प्राचीन युग) का संस्थापक माना जाता है। फिर तिब्बत में प्राचीनकाल से लेकर अब तक कई बार राजनीतिक अस्थिरता का समय आया परन्तु तिब्बती बौद्ध धर्म आज तक जिन्दा है जिसे आज हम दलाई लामा की परम्परा के सन्दर्भ में समझ सकते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म में भी बुद्धत्व और बोधिसत्व की चर्चा है। तिब्बती बौद्ध धर्म में बोधिसत्वों में अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, वज्रपाणि और तारा शामिल हैं।

     तिब्बती बौद्ध धर्म के अन्तर्गत बोधिसत्व के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित पाँच मार्ग का उल्लेख है-

    संचय का मार्ग

    तैयारी का मार्ग

    देखने का मार्ग

    ध्यान का मार्ग

    कोई और अधिक सीखने का मार्ग

     इसी मार्ग का समापन बुद्धत्व में होता है। फिर अन्य बौद्ध धर्म परम्पराओं की तरह तिब्बती बौद्ध धर्म में भी गुरु को काफी महत्त्व दिया गया है। तिब्बती बौद्ध शिक्षक/ गुरु को लामा कहा जाता है। साथ ही बौद्ध मठ का भी तिब्बती बौद्ध परम्परा में महत्त्वपूर्ण स्थान है। साथ ही साथ तिब्बती बौद्ध परम्परा में महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई है।

      इस प्रकार तिब्बती बौद्ध दर्शन में बुद्धत्व प्राप्त करना, गुरु योग, गूढार्थवाद, अनुष्ठान, मन्त्र, तान्त्रिक योग इत्यादि महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं, जो आज भी निरन्तर हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यद्यपि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भारत में हुई तथा आज यह अपने जन्म स्थल से विलुप्त होता जा रहा है। परन्तु विदेशों में विशेषकर दक्षिण-पूर्वी एशिया, तिब्बत में आज भी यह व्यापक रूप में मौजूद है, जो इसकी प्रासंगिकता को बताता है।

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