Wednesday, October 6, 2021

मीमांसा दर्शन का अन्विताभिधानवाद

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

मीमांसा दर्शन का अन्विताभिधानवाद

मीमांसा दर्शन का अन्विताभिधानवाद

अन्विताभिधानवाद

     यह विचारधारा मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित है। इस विचारधारा के समर्थक प्रभाकर का गुरु सम्प्रदाय है। कुमारिल का भट्ट सम्प्रदाय ने इसका समर्थन नहीं किया है। अन्विताभिधानवाद विचारधारा के अनुसार शब्दों के अर्थ केवल उसी अवस्था में जाने जा सकते हैं जबकि वे ऐसे वाक्य में आते हैं, जो किसी कर्तव्य का आदेश करता है। इस प्रकार शब्द पदार्थों को केवल इस प्रकार के वाक्य के अन्य अवयवों से सम्बद्ध रूप से ही घोषित करते हैं।  यदि वे एक आदेश से सम्बद्ध नहीं हैं, बल्कि केवल अर्थों के ही स्मरण कराते हैं, तो यह स्मृति का विषय है, जो प्रामाणिक बोध नहीं है। इस प्रकार प्रभाकर का मत है कि भाषा अर्थ का निर्धारण तभी होता है, जब पहले उसमें प्रयुक्त शब्दों का अर्थ ज्ञात हो जाए अर्थात् छोटे-छोटे शब्दों के अर्थों के अन्वय से ही भाषा का अभिधान होता है।

-----------


No comments:

Post a Comment

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...