वैशेषिक दर्शन में कर्म की अवधारणा
भारतीय दर्शन |
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वैशेषिक दर्शन में कर्म की अवधारणा |
वैशेषिक दर्शन में कर्म की अवधारणा
कर्म या क्रिया का आधार द्रव्य है। कर्म मूर्त द्रव्यों का गतिशील
व्यापार है। कर्म का निवास सर्वव्यापी द्रव्यों (जैसे-आकाश) में नहीं
होता,
क्योंकि
वे स्थान परिवर्तन से शून्य हैं। द्रव्य की दो विशेषताएँ होती हैं- सक्रियता
तथा निष्क्रियता। कर्म द्रव्य का सक्रिय रूप तथा गुण द्रव्य का निष्क्रिय रूप है।
कर्म के प्रकार
कर्म या क्रिया पाँच प्रकार की होती हैं-
- उत्प्रेक्षण-ऊपर
जाना
- अवक्षेपण-नीचे
जाना
- संकुचन
- प्रसारण-विस्तार
- गमन
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