बौद्धों का आत्मख्यातिवाद
भारतीय दर्शन |
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बौद्धों का आत्मख्यातिवाद |
बौद्धों का आत्मख्यातिवाद
आत्मख्यातिवाद
यह विज्ञानवादी बौद्धों का सिद्धान्त है। इस दर्शन के अनुसार जिसे
हम बाह्य जगत् कहते हैं और जिसे हम भौतिक रूप में अस्तित्ववान मानते हैं, वह वास्तव
में भौतिक रूप में अस्तित्व नहीं रखता। बाह्य संसार खरगोश के सींग एवं आकाश कुसुम के
समान असत् है। यह स्वप्न के समान है; जैसे-स्वप्न
में हमें कई प्रकार के पदार्थों का जगत् दिखता है पर वे सब पदार्थ हमारे भीतर ही होते
हैं। इस प्रकार, विज्ञानवादी बाह्य का अस्तित्व नहीं मानते, अब जब
सब कुछ आत्म स्थित है तब भ्रम के विषय जैसे साँप भी हमारे मन के प्रत्यय ही हैं। मन
के भीतर के प्रत्यय को ही हम बाह्य जगत् में प्रक्षेपित करते हैं। इस प्रकार बाहरी
जगत् में सर्प के न होते हुए भी हमें सर्प दिखाई देता है।
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