मीमांसा दर्शन का त्रिपुटि-संवित सिद्धान्त

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मीमांसा दर्शन का त्रिपुटि-संवित सिद्धान्त 

मीमांसा दर्शन का त्रिपुटि-संवित सिद्धान्त 

त्रिपुटि-संवित (प्रभाकर)

    वस्तुत: तीन (ज्ञाता, ज्ञान एवं ज्ञेय) का समूह 'त्रिपुटि' कहलाता है, जबकि संवित का अर्थ चेतना या समझ है। प्रभाकर के अनुसार ज्ञान के तीन आयाम हैं-ज्ञाता, ज्ञेय तथा ज्ञान। प्रत्येक ज्ञान की अभिव्यक्ति में इस त्रिपुटि का प्रत्यक्ष होता है, इसीलिए प्रभाकर का ज्ञान विषयक मत 'त्रिपुटि प्रत्यक्षवाद' कहलाता है।

    प्रभाकर के अनुसार ज्ञान स्वप्रकाश है, उसे अपनी अभिव्यक्ति के लिए किसी अन्य ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। अत: स्पष्ट है कि ज्ञान की उत्पत्ति तथा उसकी प्रामाणिकता के सन्दर्भ में प्रभाकर परत:प्रामाण्यवाद को स्वीकार न करके स्वत:प्रामाण्यवाद को स्वीकार करते हैं। इनकी मान्यता है कि ज्ञान के प्रामाण्य को सिद्ध करने के लिए अन्य ज्ञान की कल्पना से अनावस्था दोष पैदा होता है। ज्ञान स्वप्रकाश तो है, किन्तु नित्य नहीं है, क्योंकि ज्ञान आत्मा का आगन्तुक गुण है। अत: यह उत्पत्ति-विनाश धर्मा है। विषय सम्पर्क से आत्मा में ज्ञान उत्पन्न होता है, चूँकि ज्ञान स्वप्रकाश है इसलिए वह स्वयं को प्रकाशित करने के साथ ही ज्ञेय (विषय) एवं ज्ञाता (आत्मा) को भी प्रकाशित करता है। परिणामस्वरूप प्रत्येक ज्ञान में ज्ञाता, ज्ञेय तथा ज्ञान की त्रिपुटि का प्रत्यक्ष होता है। इसी प्रकार दीपक का प्रकाश घटपटादि पदार्थ को ज्ञेय के रूप में, स्वयं को ज्ञान के रूप में और अपने आश्रयभूत पात्र को ज्ञाता के रूप में प्रकाशित करता है। ज्ञान स्वप्रकाश है, किन्तु आत्मा स्वप्रकाश नहीं है। आत्मा पदार्थ के समान जड़द्रव्य है, जो अपनी अभिव्यक्ति के लिए ज्ञान पर निर्भर है। आत्मा ज्ञान का आश्रय है, किन्तु अपनी अभिव्यक्ति के लिए स्वयं ज्ञान पर आश्रित है।

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