योग दर्शन में चित्तभूमियाँ

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योग दर्शन में चित्तभूमियाँ

योग दर्शन में चित्तभूमियाँ

    योग दर्शन चित्तभूमि अर्थात् मानसिक अवस्था के भिन्न-भिन्न रूपों में विश्वास करता है। व्यास ने चित्त की पाँच अवस्थाओं अर्थात् पाँच भूमियों का उल्लेख किया है

  1. क्षिप्त चित्त की इस अवस्था में रजो गुण की प्रधानता होती है। इसलिए इस अवस्था में चित्त में अत्यधिक सक्रियता तथा चंचलता रहती है, परिणामस्वरूप ध्यान किसी एक वस्तु पर टिक नहीं पाता है।
  2. मूढ़ चित्त की इस अवस्था में चित्त में तमो गुण की प्रधानता होती है, परिणामस्वरूप चित्त निद्रा, आलस्य एवं निष्क्रियता से ग्रसित रहता है।
  3. विक्षिप्त यह क्षिप्त तथा मूढ़ के बीच की अवस्था है। इस अवस्था में चित्त का ध्यान किसी वस्तु पर तो जाता है, किन्तु वहाँ अधिक देर तक टिकता नहीं है।
  4. एकाग्र चित्त की इस अवस्था में सत् गुण की प्रधानता होने के कारण चित्त किसी वस्तु पर टिकने लगता है। चित्त की यह अवस्था योग के अनुकूल मानी गई है, क्योंकि इस अवस्था में 'सम्प्रज्ञात समाधि' की स्थिति उभरती है।
  5. निरुद्ध चित्त की इस अवस्था में चित्त की समस्त प्रकार की वृत्तियों का निरोध (तिरोधान) हो जाता है, परिणामस्वरूप चित्त की चंचलता पूर्णत: समाप्त हो जाती है तथा 'असम्प्रज्ञात समाधि' की स्थिति उभरती है, जिसमें पुरुष को चित्त से अपनी भिन्नता का ज्ञान हो जाता है।

 एकाग्र और निरुद्ध अवस्थाओं को योगाभ्यास के योग्य माना जाता है। क्षिप्त, मूढ़ और विक्षिप्त चित्त की साधारण अवस्थाएँ हैं, जबकि एकाग्र और निरुद्ध चित्त की असाधारण अवस्थाएँ हैं।

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