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अदृष्ट ( Adṛṣṭa ) की अवधारणा |
अदृष्ट ( Adṛṣṭa ) की अवधारणा
ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए न्याय वैशेषिक दर्शन
अदृष्ट की सहायता लेता है। अदृष्ट धर्म एवं अधर्म अथवा पाप एवं पुण्य के संग्रह को
अदृष्ट कहते हैं, जिससे कर्मफल उत्पन्न होता है। सभी जीवों को
अदृष्ट का फल मिलता है किन्तु अदृष्ट जड़ है। इसी जड़ अदृष्ट के संचालन के लिए
चेतन द्रव्य ईश्वर है।
वैशेषिक के अनुसार, वेद ईश्वर-वाक्य है। ईश्वर
नित्य, सर्वज्ञ, पूर्ण है। ईश्वर अचेतन
अदृष्ट के सञ्चालक है। ईश्वर इस जगत के निमित्तकारण और परमाणु उपादान कारण है।
ईश्वर का कार्य सर्ग के समय अदृष्ट से गति लेकर परमाणुओं में आद्यस्पन्दन के रूप
में सचरित कर देना और प्रत्यय के समय इस गति का अवरोध करके वापस अदृष्ट में
संक्रमित कर देना है।
वैशेषिक के अनुसार परमाणुओं में संयोग सृष्टि का कारण है।
परमाणु भौतिक तथा निष्क्रिय है इसमें सक्रियता और गति ईश्वरीय इच्छा के द्वारा आती
है। ईश्वर 'अदृष्ट' से गति लेकर परमाणुओं में डाल
देता है जिससे परमाणुओं गति उत्पन्न होती है और परमाणु एक दूसरे से जुड़ने लगते
हैं जिससे शृष्टि का प्रारंभ होता है।
वैशेषिक में ईश्वर की कल्पना परमात्मा के रूप में मिलती है जो
विश्व के निमित्त कारण और परमाणु उपादान कारण है। ईश्वर का कार्य, सर्ग
के समय अदृष्ट से गति लेकर परमाणुओं में आद्यस्पन्दन के रूप में सञ्चरित कर देना,
और प्रलय के समय, इस गति का अवरोध करके वापस
अदृष्ट में संक्रमित कर देना है। अतः अदृष्ट एक नैतिक व्यवस्था है।
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