स्वामी दयानन्द सरस्वती ( Dayananda Saraswati )
स्वामी दयानन्द सरस्वती ( Dayananda Saraswati ) |
स्वामी दयानन्द सरस्वती ( Dayananda Saraswati )
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (1824-1883) आधुनिक भारत के
महान चिन्तक, समाज-सुधारक, तथा आर्य समाज के
संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वंत्रता दिलाने के लिए 10
अप्रैल 1875 ई. को मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक
चिन्तक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। 'वेदों
की ओर लौटो' यह उनका प्रमुख नारा था।
स्वामी दयानन्द ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें 'ऋषि'
कहा जाता है क्योंकि 'ऋषयो मन्त्र दृष्टारः'
(वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है)। उन्होने कर्म
सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा
सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले 1863 में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक
ने आगे बढ़ाया। प्रथम जनगणना के समय स्वामी जी ने आगरा से देश के सभी आर्यसमाजो को
यह निर्देश भिजवाया कि 'सब सदस्य अपना धर्म ' सनातन धर्म' लिखवाएं। क्योंकि 'हिंदू' शब्द विदेशियों की देन हैं और 'फारसी भाषा' में इसके अर्थ 'चोर,
डाकू' इत्यादि हैं ।
दयानन्द के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य
है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा, भगत सिंह,
पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, चौधरी छोटूराम पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी
कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला
हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद 'बिस्मिल', महादेव गोविंद रानाडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि। स्वामी
दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने 1886 में लाहौर में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा
स्वामी श्रद्धानन्द ने 1901 में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना
की।
स्वामी दयानन्द के योगदान के बारे में महापुरुषों के विचार
Ø डॉ॰ भगवान
दास ने कहा था कि स्वामी दयानन्द हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे।
Ø श्रीमती एनी
बेसेन्ट का कहना था कि स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने
'आर्यावर्त (भारत) आर्यावर्तियों (भारतीयों) के लिए' की घोषणा की।
Ø सरदार पटेल
के अनुसार भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानन्द ने डाली थी।
Ø पट्टाभि
सीतारमैया का विचार था कि गाँधी जी राष्ट्रपिता हैं, पर स्वामी दयानन्द
राष्ट्र–पितामह हैं।
Ø फ्रेंच लेखक
रोमां रोलां के अनुसार स्वामी दयानन्द राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति को क्रियात्मक
रूप देने में प्रयत्नशील थे।
Ø अन्य फ्रेंच
लेखक रिचर्ड का कहना था कि ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त
कराने और जाति बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। उनका आदर्श है- आर्यावर्त ! उठ, जाग,
आगे बढ़। समय आ गया है, नये युग में प्रवेश
कर।
Ø स्वामी जी
को लोकमान्य तिलक ने "स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र प्रदान करने
वाले जाज्व्लयमान नक्षत्र थे दयानन्द "
Ø नेताजी
सुभाष चन्द्र बोस ने "आधुनिक भारत का आद्यनिर्माता" माना।
Ø अमरीका की
मदाम ब्लेवेट्स्की ने "आदि शंकराचार्य के बाद "बुराई पर सबसे निर्भीक
प्रहारक" माना।
Ø सैयद अहमद
खां के शब्दों में "स्वामी जी ऐसे विद्वान और श्रेष्ठ व्यक्ति थे, जिनका
अन्य मतावलम्बी भी सम्मान करते थे।"
Ø वीर
सावरकर ने कहा महर्षि दयानन्द संग्राम के
सर्वप्रथम योद्धा थे।
Ø लाला लाजपत
राय ने कहा - स्वामी दयानन्द ने हमे स्वतंत्र विचारना, बोलना
और कर्त्तव्यपालन करना सिखाया।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ( Dayananda Saraswati ) का लेखन व साहित्य
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कई धार्मिक व सामाजिक पुस्तकें अपनी
जीवन काल में लिखीं। प्रारम्भिक पुस्तकें संस्कृत में थीं, किन्तु
समय के साथ उन्होंने कई पुस्तकों को आर्यभाषा (हिन्दी) में भी लिखा, क्योंकि आर्यभाषा की पहुँच संस्कृत से अधिक थी। हिन्दी को उन्होंने 'आर्यभाषा' का नाम दिया था। उत्तम लेखन के लिए
आर्यभाषा का प्रयोग करने वाले स्वामी दयानन्द अग्रणी व प्रारम्भिक व्यक्ति थे। यदि
ऋषि दयानन्द सरस्वती के ग्रंथों व विचारों ( यद्यपि ये विचार ऋषि के स्वयं द्वारा
निर्मित थे अपितु वेद द्वारा प्रदत्त थे ) पर चला जाये तो राष्ट्र पुनः विश्वगुरु
गौरवशाली, वैभवशाली, शक्तिशाली,
स्मम्पन्नशाली, सदाचारी और महान बन जाये। स्वामी
दयानन्द सरस्वती की मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
Ø सत्यार्थप्रकाश
Ø ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
Ø ऋग्वेद
भाष्य
Ø यजुर्वेद
भाष्य
Ø चतुर्वेदविषयसूची
Ø संस्कारविधि
Ø पंचमहायज्ञविधि
Ø आर्याभिविनय
Ø गोकरुणानिधि
Ø आर्योद्देश्यरत्नमाला
Ø भ्रान्तिनिवारण
Ø अष्टाध्यायीभाष्य
Ø वेदांगप्रकाश
Ø संस्कृतवाक्यप्रबोध
Ø व्यवहारभानु
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