संवर-निर्जरा ( Samvara )
संवर-निर्जरा ( Samvara ) |
संवर-निर्जरा ( Samvara )
संवर – सम् वृणोति इति संवरः । आशय
यह कि जो ढंक देता है वह संवर है। जैन दर्शन के अनुसार- आस्त्रव निरोधः संवर:
(सर्व० सं०, पृ० 164)। अर्थात् आस्त्रव का निरोध हो जाना
(कर्म पुद्गलों का आत्मा में प्रविष्ट न होना) संवर है।
निर्जरा - जैन दर्शन के अनुसार - अजितस्य
कर्मणस्तयः प्रभृतिभिनिर्जरणं निर्जराख्यं तत्त्वम् (सर्व० सं०, पृ०
166)। अर्थात् जो कर्म अर्जित किया गया हो उसे अपनी तपस्या इत्यादि से नष्ट कर
देना निर्जरा तत्व है। कषाय समूह से उत्पन्न पुण्य तथा सुख और दुःख को भी यह तत्व
शरीर से ही नष्ट कर देता है।
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