सत्य ( Satya ) का स्वरूप
सत्य ( Satya ) का स्वरूप |
सत्य ( Satya ) का स्वरूप
सत्य — सत्य शब्द की व्युत्पत्ति सत् धातु में अत्
प्रत्यय करने पर होती है जिसका अर्थ होता है - वास्तविक यथार्थ इत्यादि। वैशेषिक
दर्शन में कहा गया है— सत्यं यथार्थि वांगमनसे यथादृष्टं यथानुमिति
यथा श्रुतं तथा वांगमनश्चेति अर्थात् वाणी और मन का यथार्थ होना, जैसा देखा, जैसा अनुमान किया और जैसा सुना, मन और वाणी का वैसा ही व्यवहार करना सत्य है। मनुस्मृति में कहा गया है –
सत्यं ब्रूयाति प्रियं ब्रूयान्न
ब्रूयात सत्यमप्रियम् ।
प्रियं च नानृतं ब्रुयादेष धर्मः
सनातनः ॥ (मनु०, 4.138)
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