योग दर्शन में चित्तवृत्तियाँ
भारतीय दर्शन |
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योग दर्शन में चित्तवृत्तियाँ |
योग दर्शन में चित्तवृत्तियाँ
जब चित्त इन्द्रियों द्वारा बाह्य विषयों के सम्पर्क में आता है, तब वह
विषय का आकार ग्रहण कर लेता है, तो इस आकार को
ही वृत्ति कहते हैं। जब पुरुष के चैतन्य के प्रकाश से चित्तवृत्ति प्रकाशित होती है, तब जीव
को विषय का ज्ञान हो जाता है। योग दर्शन में चित्तवृत्तियों के पाँच प्रकार बताए गए
हैं-
- प्रमाण
इस वृत्ति के द्वारा यथार्थ ज्ञान प्राप्त होता है।
- विपर्यय
इस वृत्ति के द्वारा मिथ्या ज्ञान प्राप्त होता है।
- विकल्प
इस वृत्ति के द्वारा काल्पनिक ज्ञान प्राप्त होता है।
- निद्रा
यह एक मानसिक वृत्ति है, जिसके द्वारा
जीव को यह ज्ञान होता है कि उसे निद्रा आई।
- स्मृति
इस वृत्ति के द्वारा पूर्व में अनुभव किए गए विषयों का संस्कारजन्य ज्ञान प्राप्त
होता है।
योग मतानुसार चित्त की ये सभी पाँचों वृत्तियाँ जीव को सुख, दुःख
तथा मोह आदि का अनुभव कराती हैं तथा उसे बन्धन में बाँधे रहती हैं। अत: बन्धन
से मुक्ति के लिए इन वृत्तियों का निरोध करना आवश्यक है।
योग दर्शन में इन वृत्तियों के निरोध के दो उपाय बताए गए हैं-
- अभ्यास तथा
- वैराग्य
तप, ब्रह्मचर्य, विद्या तथा श्रद्धा के साथ दीर्घकाल तक निरन्तर अनुष्ठान से वृत्ति निरोध करने का प्रयास ही 'अभ्यास' कहलाता है, जबकि अनासक्त जीवन जीना वैराग्य का सूचक है, किन्तु चित्त में विद्यमान क्लेशों के कारण वैराग्य सम्भव नहीं हो पाता, जिससे चित्त की वृत्तियों का पूर्णत: निरोध नहीं होता। परिणामस्वरूप हमें विवेक ज्ञान भी प्राप्त नहीं हो पाता।
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