Sunday, May 29, 2022

सन्त कवि भीमा भोई ( Bhima Bhoi )

सन्त कवि भीमा भोई ( Bhima Bhoi ) 

सन्त कवि भीमा भोई ( Bhima Bhoi ) 

    उड़ीसा के एक प्रतिभाशाली काँधा आदिवासी कवि और समाज सुधारक सन्त कवि भीमा भोई जी के जीवन के संबंध में ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम उपलब्ध है । इनका जीवन कष्ट और निर्धनता में बीता और अपने जीवन में इन्होंने बहुत अपमान और शारीरिक यातना सही । महिमा धर्म के प्रवर्तक महिमा गोसाई से इनकी मुलाकात हुई और इन्होंने इस धर्म की दीक्षा ली । यह मुलाकात कुछ वैसी ही कही जा सकती है, जिस तरह रामकृष्ण परमहंस से नरेंद्रनाथ दत्त ( विवेकानंद ) की हुई थी । भीमा भोई स्कूल जाने का अवसर न पाकर अशिक्षित थे, पर उनमें एक स्वतःस्फूर्त विवेक था । दयानंद सरस्वती की ही तरह मूर्ति पूजा के विरोधी, पर वेद को भी नहीं मानते थे । ये जातिवाद के प्रचंड विरोधी थे । इनकी दृष्टि में परम ब्रह्म एक है, वह अलख, निरंजन और निराकार है । इनके अनुसार, शून्य से ओम, ओम से शब्द, रूप, प्रकाश, जल और दुनिया की उत्पत्ति हुई है । इन्होंने बोलनगीर जिले के खलियापालि में एक आश्रम की स्थापना की और बौद्ध शून्यवाद और हिंदू धर्म की ब्रह्म की अवधारणा के बीच सामंजस्य स्थापित किया । इन्होंने महिमा धर्म में गृहस्थी और स्त्री को बराबर की मान्यता दिलाई । बाह्याडंबर, चंदन लेप, जप, तिलक, कंठी, जनेऊ, तीर्थयात्रा, हवन, एकादशी व्रत और अन्य धार्मिक रूढ़ियों का इन्होंने पुरजोर विरोध किया । ये पुरी के जगन्नाथ मंदिर को अंधविश्वास का स्रोत मानते थे । महिमा धर्म के लोग वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे । भीमा भोई ने इस संघर्ष को आगे बढ़ाया । उड़िया साहित्य-संस्कृति पर पंच सखाओं का गहरा प्रभाव है यह प्रभाव भीमा पर भी । इसलिए इन्होंने पुरोहितवाद का प्रबल विरोध किया । इनकी प्रमुख रचनाएँ - स्तुति चिंतामणि और भजनमाला है । 1971 में भीमा भोई ग्रंथावली प्रकाशित हुई । आज भी भीमा भोई के भजन आदिवासी क्षेत्रों में तन्मयता से गाए जाते हैं । उड़ीसा की आत्मा की परिचायक उनकी ये दो पंक्तियाँ बहुत लोकप्रिय हुई - संसार के उद्धार के लिए मुझे नरक में भी रहना पड़े तो मुझे स्वीकार है ।'

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मौलाना आजाद का मानवतावाद

मौलाना आजाद का मानवतावाद       

मौलाना आजाद का मानवतावाद       

    मौलाना आजाद का विचार मानवतावाद इस्लाम से प्रेतित था उन्होंने कहा था कि “इस्लाम का आव्हान मानवतावाद है”। उनके अनुसार, सारी मानव जाति को खुदा ने बनाया है और मानव की भलाई के लिए विभिन्न कालों में पृथ्वी के हर कोने में अनेक पैगम्बरों को भेजा है । इसलिए मानवता किसी भी धार्मिक विभाजन से परे है ।

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मौलाना आजाद ( Abul Kalam Azad )

मौलाना आजाद ( Abul Kalam Azad ) 

मौलाना आजाद ( Abul Kalam Azad ) 

    मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन (11 नवंबर, 1888 - 22 फरवरी, 1958) एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पद पर रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने। वे 1940 और 1945 के बीच कांग्रेस के प्रेसीडेंट रहे। आजादी के बाद वे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की -

Ø  संगीत नाटक अकादमी (1953)

Ø  साहित्य अकादमी (1954)

Ø  ललितकला अकादमी (1954)

मौलाना आजाद ( Abul Kalam Azad ) के दार्शनिक विचार 

मौलाना आजाद का मानवतावाद


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एम एन राय का भौतिकवाद

एम एन राय का भौतिकवाद 

एम एन राय का भौतिकवाद 

    मानवेन्द्र नाथ राय पूर्णतः भौतिकवादी तथा निरीश्वरवादी दार्शनिक थे । उनका मत था कि सम्पूर्ण जगत की व्याख्या भौतिकवाद के आधार पर की जा सकती है । इसके लिए ईश्वर जैसी कोई शक्ति के अस्तित्व को स्वीकार करने की कोई आवश्यकता नहीं है । प्राकृतिक घटनाओं के समुचित प्रेक्षण तथा सूक्ष्म विश्लेषण द्वारा ही अनेक वास्तविक स्वरूप और कारणों को समझा जा सकता है । विश्व का मूल तत्त्व भौतिक द्रव्य अथवा पुद्गल है और सभी वस्तुएँ इसी पुद्गल के अन्तर्गत रूपान्तरित हैं, जो निश्चित प्राकृतिक नियमों के द्वारा नियन्त्रित होते हैं । जगत के मूल आधार इस पुद्गल के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु की अन्तिम सत्ता नहीं हैं । राय मानवीय प्रत्यक्ष को ही सम्पूर्ण ज्ञान का मूल आधार मानते हैं । इस सम्बन्ध में वे कहते हैं कि मनुष्य द्वारा जिस वस्तु का प्रत्यक्ष सम्भव है, वास्तव में, उसी का अस्तित्व है और मानव के लिए जिस वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान सम्भव नहीं है, उसका अस्तित्व भी नहीं है ।" राय के अनुसार, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड भौतिक परमाणुओं के संघात का परिणाम है, जिसका कोई रचयिता नहीं है । आत्मा के विषय में राय लिखते है कि “आत्मा की परिकल्पना निराधार है क्योंकि प्राणी की मृत्यु के पश्चात उसका कुछ भी शेष नहीं रहता जिसे आत्मा कहा जाए । वह मात्र प्राणी की चेतना थी जो भौतिक परमाणुओं से संघात से उत्पन्न हुई थी” ।

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एम एन राय का उग्र मानवतावाद

एम एन राय का उग्र मानवतावाद

एम एन राय का उग्र मानवतावाद

    एम एन राय के दर्शन में उग्र मानवतावाद का विशेष महत्व है । इन्होंने अपनी ‘द प्रॉबलम ऑफ फ्रीडम’, ‘साइंटिफिक पॉलिटिक्स’, ‘रिजन’ और ‘रोमेन्टिसीज्म एंड रिवाल्यूशन’ में मानवतावाद सम्बन्धी विचारों को व्यक्त किया है ।

    इनके उग्र मानवतावाद को ‘वैज्ञानिक मानवतावाद’, ‘नव मानवतावाद’, ‘आमूल परिवर्तनवादी मानवतावाद’ एवं ‘पूर्ण मानवतावाद’ भी कहते है । राय के अनुसार, "मानवतावाद स्वतन्त्रता के प्रयोग की अनन्त सम्भावनाओं में आस्था रखते हुए उसे किसी ऐसी विचारधारा के साथ नहीं बाँधना चाहता, जो किसी पूर्व निर्धारित लक्ष्य की सिद्धि को ही उसके जीवन का ध्येय मानती है ।राय ने मानव विकास के सिद्धान्तों में विश्वास करते हुए यह तर्क दिया है कि स्वयं मनुष्य का अस्तित्व भौतिक सृष्टि के विकास का परिणाम है । भौतिक सृष्टि स्वयं में निश्चित नियमों से बँधी हुई है, इसलिए इसमें सुसंगति पाई जाती है । मानव के अस्तित्व में यह सुसंगति तर्कशक्ति के रूप में सार्थक होती है । मनुष्य का विवेक भौतिक जगत में व्याप्त सुसंगति की ही प्रतिध्वनि है । यह मनुष्य के जीव वैज्ञानिक विकास की परिणति है । अपने विवेक से प्रेरित होकर मनुष्य जिन सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण करता है, उनमें भी वे ऐसी सुसंगति लाने का प्रयास करते हैं, जो नैतिकता के रूप में व्यक्त होती है । राय कहते हैं कि आज देश में जो संघर्ष, निर्धनता, बेरोजगारी एवं अविश्वास व्याप्त हैं, उनका प्रमुख कारण संकुचित राष्ट्रीयता की भावना है । विश्व में एकता और शान्ति तभी स्थापित हो सकती है, जब हम केवल अ पने देश के हित की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के हित की दृष्टि से सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक चिन्ताओं पर विचार करेंगे ।

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मानवेन्द्र नाथ राय ( M. N. Roy )

मानवेन्द्र नाथ राय ( M. N. Roy )

मानवेन्द्र नाथ राय ( M. N. Roy )

    मानवेन्द्रनाथ राय (18861954) भारत के स्वतंत्रता-संग्राम के राष्ट्रवादी क्रान्तिकारी तथा विश्वप्रसिद्ध राजनीतिक सिद्धान्तकार थे। उनका मूल नाम 'नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य' था। वे मेक्सिको और भारत दोनों के ही कम्युनिस्ट पार्टियों के संस्थापक थे। वे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की कांग्रेस के प्रतिनिधिमण्डल में भी सम्मिलित थे।

    मानवेन्द्रनाथ का जन्म कोलकाता के निकट एक गाँव में हुआ था।। राय के जीवनी लेखक मुंशी और दीक्षितके अनुसार, ‘‘राय का जीवन स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानन्द से प्रभावित रहा। इन सन्तों और सुधारकों के अतिरिक्त उनके जीवन पर विपिन चन्द्र पाल और विनायक दामोदर सावरकर का अमिट प्रभाव पड़ा।

मानवेन्द्र नाथ राय ( M. N. Roy ) की कृतियाँ

    इन्होंने मार्क्सवादी राजनीति विषयक लगभग 80 पुस्तकों को लिखा है जिनमें 'रीजन, रोमांटिसिज्म ऐंड रिवॉल्यूशन, हिस्ट्री ऑव वेस्टर्न मैटोरियलिज्म, रशन रिवॉल्यूशन, रिवाल्यूशन ऐंड काउंटर रिवाल्यूशन इन चाइना' तथा 'रैडिकल ह्यूमैनिज्म' प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं -

(1) दी वे टू डयूरेबिल पीस

(2) वन ईयर ऑफ नॉन-कोऑपरेशन

(3) दी रिवोल्यूशन एण्ड काउण्टर रिवोल्यूशन इन चाइना

(4) रीज़न, रोमाण्टिसिज़्म एण्ड रिवोल्यूशन

(5) इण्डियान इन ट्रांज़ीशन

(6) इंडियन प्रॉबलम्स एण्ड देयर सोल्यूशन्स

(7) दी फ्यूचर ऑफ इण्डियन पॉलिटिक्स

(8) हिस्टोरिकल रोल ऑफ इस्लाम

(9) फासिज्म : इट्स फिलॉसफी, प्रोफेशन्स एण्डप्रैक्टिस

(10) मैटिरियलिज़्म

(11) न्यू ओरियन्टेशन

(12) बियोन्ड कम्यूनिस्म टू ह्यूमेनिज्म

(13) न्यू ह्यूमेनिज्म एण्ड पॉलिटिक्स

(14) पॉलिटिक्स, पावर एण्ड पार्टीज़

(15) दी प्रिंसिपल्स ऑफ रेडिकल डेमोक्रेसी

(16) कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ फ्री इण्डिया

(17) रेडिकल ह्यूमेनिज्म

(18) अवर डिफरेन्सेज़

(19) साइन्स एण्ड फिलॉसफी

(20) ट्वेण्टि टू थीसिस

मानवेन्द्र नाथ राय ( M. N. Roy ) के दार्शनिक विचार 

एम एन राय का उग्र मानवतावाद

एम एन राय का भौतिकवाद

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Saturday, May 28, 2022

ज्योतिबा फुले का जाति व्यवस्था बोध

ज्योतिबा फुले का जाति व्यवस्था बोध 

ज्योतिबा फुले का जाति व्यवस्था बोध 

    ज्योतिबा फुले जातीय व्यवस्था के बुनियादी समाज में परिवर्तन करना चाहते थे । इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र में “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की । ज्योतिबा फुले ने अपनी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ में जाति व्यवस्था की व्याख्या की और कहा कि “हमे भारतीय समाज के शूद्र-अतिशूद्र लोगों की ऐतिहासिक गुलामी का अन्त करना होगा और इसके लिए सभी न्यायप्रिय लोगों को विरोध करना पड़ेगा”।

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विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...