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भारतीय दर्शन का स्वरूप एवं परिचय (Nature and Introduction of Indian Philosophy)

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भारतीय दर्शन का स्वरूप एवं परिचय ( Nature and Introduction of Indian Philosophy ) भारतीय दर्शन का स्वरूप एवं परिचय  (Nature and Introduction of Indian Philosophy)    भारतीय दर्शन की पृष्ठभूमि एवं साहित्य      भारतीय दर्शन का सार तत्त्व साक्षात्कार है जिससे मनुष्य समस्त दु:खों से निवृत्त हो जाता है। सांख्यकारिका में वर्णित है कि, “दु:ख त्रयाभिधाता जिज्ञासा तदपद्यात” अर्थात् आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दु:खों से निवृत्ति के लिए दार्शनिक जिज्ञासा करनी चाहिए।  यह जिज्ञासा जीव के मोक्ष का आधार है। भारतीय दर्शन जीव उस विवेक ज्ञान को प्राप्त करता है जिसको जान लेने से कुछ भी अज्ञात शेष नहीं रहता। भारतीय दर्शन एक ऐसी दिव्यदृष्टि प्रदान करता है जिससे आत्मदर्शन व तत्त्वदर्शन सम्भव हो जाता है।      भारतीय दर्शन का प्रारम्भ प्रतिपक्ष के रूप में चार्वाक दर्शन से होता है ओर विस्तार होता हुआ अन्त में मुक्ति के मार्ग अर्थात योगदर्शन पर समाप्त हो जाता है। भारतीय दार्शनिक विचारों का मूल यद्यपि वेद है परन्तु इसका एक सुव्यवस्थित तथा क्रमबद्ध रूप सर्वप्रथम सूत्र ग्रंथों में मिलता है। सूत्र शब्द का