चार्वाक दर्शन (Charvaka Philosophy) एवं इसका साहित्य
चार्वाक दर्शन (Charvaka Philosophy) चार्वाक दर्शन (Charvaka Philosophy) चार्वाक दर्शन यावजीवं सुखं जीवेन्नास्ति मृत्योरगोचरः । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ? बृहस्पति के मत को मानने वाले , नास्तिकों के शिरोमणि (प्रधान) चार्वाक के मत का खण्डन करना कठिन है , क्योंकि प्रायः संसार में सभी प्राणी इसी लोकोक्ति पर चलते हैं - ' जबतक जीवन रहे सुख से जीना चाहिए , ऐसा कोई नहीं जिसके पास मृत्यु न जा सके , जब शरीर एक बार जल जाता है तब इसका पुनः आगमन कैसे हो सकता है ? सभी लोग नीतिशास्त्र और कामशास्त्र के अनुसार अर्थ (धन-संग्रह) और काम (भोग-विलास) को ही पुरुषार्थ समझते हैं , परलोक की बात को स्वीकार नहीं करते हैं तथा चार्वाक-मत का अनुसरण करते हैं। इस तरह मालूम होता है [बिना उपदेश के ही लोग स्वभावतः सर्वदर्शनसंग्रहे चार्वाक की ओर चल पड़ते हैं] इसलिए चार्वाक-मत का दूसरा नाम अर्थ के अनुकूल ही है-लोकायत (लोक = संसार में , आयत = व्याप्त , फैला हुआ)। विशेष - शङ्कर , भास्कर तथा अन्य टीकाकार लोकायतिक नाम देते हैं। लोकायतिक-मत चार्वाकों का कोई सम्प्रदाय है। चार्वाक = चारु (सुन्दर) , वा