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तिब्बती बौद्ध दर्शन / Tibetan Buddhist Philosophy

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तिब्बती बौद्ध दर्शन / Tibetan Buddhist Philosophy तिब्बती बौद्ध दर्शन / Tibetan Buddhist Philosophy     तिब्बती बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म की महायान शाखा की एक उपशाखा है जो तिब्बत , मंगोलिया , भूटान , उत्तर नेपाल , उत्तर भारत के लद्दाख़ , अरुणाचल प्रदेश , लाहौल व स्पीति ज़िले और सिक्किम क्षेत्रों , रूस के कालमिकिया , तूवा और बुर्यातिया क्षेत्रों और पूर्वोत्तरी चीन में प्रचलित है। तिब्बती इस समप्रदाय की धार्मिक भाषा है और इसके अधिकतर धर्मग्रन्थ तिब्बती व संस्कृत में ही लिखे हुए हैं। वर्तमानकाल में 14वें दलाई लामा इसके सबसे बड़े धार्मिक नेता हैं।     तिब्बती बौद्ध दर्शन की चार प्रमुख शाखाएं है – निमिंगम, काग्यू, शाक्य और गेलुग। इसके साथ-साथ तिब्बती बौद्ध दर्शन में बोधिसत्व को प्राप्त करने के लिए पाँच मार्गों का वर्णन है – संचय का मार्ग तैयारी का मार्ग देखने का मार्ग ध्यान का मार्ग अधिक सीखने का मार्ग।    तिब्बत में भारत के संस्कृत बौद्ध ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद राजा सोंगत्सान्पो गम्पो के शासन काल में किया गया था। पद्मसम्भव को तिब्बती बौद्ध धर्म की सबसे पुरानी परम्परा ‘

बौद्ध धर्म में ब्रह्मण एवं श्रमण परम्परा / Brahman and Shramana Traditions in Buddhism

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बौद्ध धर्म में ब्रह्मण एवं श्रमण परम्परा / Brahman and Shramana Traditions in Buddhism बौद्ध धर्म में ब्रह्मण एवं श्रमण परम्परा / Brahman and Shramana Traditions in Buddhism     भारत में प्राचीन काल से ही दो मुख्य परम्पराएं देखने को मिलती है। एक ब्रह्मण परम्परा और दूसरी श्रमण परम्परा। ब्रह्मण परम्परा के उपासक मूलतः ब्रह्मण जाति के लोग थे जो वेदों को प्रमुख स्रोत मानते थे और उसे ईश्वरीय ज्ञान का आधार मानते थे। वे वैदिक देवताओं की पूजा-अर्चना करते थे। वे कर्मकाण्ड में विश्वास रखते थे तथा वर्णव्यवस्था को स्वीकार करते थे। किन्तु श्रमण-परम्परा को मानने वालों ने वेदों के स्थान पर लोक-प्रचलित मान्यताओं, कथाओं को अपनाया। वैदिक ऋषियों की जगह योगी और तपस्वियों को माना तथा वैदिक कर्मकाण्ड के स्थान पर चिन्तन, मनन, तप, संयम, त्याग और ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ समझा। बौद्ध धर्म और जैन धर्म इसी श्रमण-परम्परा के अनुगामी सिद्ध हुए एवं इन्हीं धर्मों से निःसृत कथाएं, उपदेशोंक्तियाँ आदि बौद्ध कथा/जातक कथा, जैन कथा/आगम कथा की संज्ञा दी गई। -----------

बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग / Eightfold Path of Buddhism

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बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग / Eightfold Path of Buddhism बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग / Eightfold Path of Buddhism      बुद्ध के द्वितीय आर्य सत्य अर्थात दुःख समुदय को ‘प्रतीत्यसमुत्पाद’ कहा जाता है। इसका अर्थ – दुःख के कारण को खोज करना है। यदि एक बार कारण को खोज लिया जाए तो निवारण स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। बुद्ध का दर्शन दुःख से निवारण का मार्ग है। अतः बुद्ध ने सर्वप्रथम दुःख के कारणों को खोज और द्वादश निदान संसार के लोगों को बताए जो इस प्रकार है – जरा-मरण अर्थात वृद्धा अवस्था।  जाति अर्थात जन्म लेना। भव अर्थात जन्म ग्रहण करने की इच्छा। उपादान अर्थात जगत की वस्तुओं के प्रति राग एवं मोह। तृष्णा अर्थात विषयों के प्रति आसक्ति। वेदना अर्थात अनुभूति स्पर्श अर्थात इन्द्रियों का विषयों से संयोग षडायतन अर्थात छः इन्द्रिय समूह या शरीर नामरुप अर्थात मन के साथ शरीर सम्बन्ध। विज्ञान अर्थात चेतना संस्कार अर्थात पूर्व जन्मों के फल अविद्या अर्थात अनित्य को नित्य, असत्य को सत्य और अनात्म को आत्म समझना।     इस प्रकार इन 12 कारणों से दुःख उत्पन्न होता है। बुद्ध ने दुःख निरोध के लिए 8

बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य / Four Noble Truths of Buddhism

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बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य / Four Noble Truths of Buddhism  बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य / Four Noble Truths of Buddhism     ‘चार आर्य सत्य’ गौतम बुद्ध के व्यवहारिक दर्शन को प्रकट करने वाला विचार है। इन चरों आर्य सत्यों में दुःख क्या है तथा उसका निवारण कैसे हो पर प्रकाश डाला गया है। बुद्ध संसार के लोगों से पूछते है की “अंधकार से घिरे हुए तुम लोग दीपक क्यों नहीं खोजते हो? और कहते है कि ' अप्प दीपो भव ' अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। अतः दीपक खोजने से स्वयं दीपक बनने का दर्शन इन चार आर्य सत्यों में निहित है जिसका वर्णन इस प्रकार है – प्रथम आर्य सत्य – सर्वं दुःखम् अर्थात सब और दुःख है। द्वितीय आर्य सत्य – दुःख समुदयः अर्थात दुःख के कारण तृतीय आर्य सत्य – दुःख निरोधः अर्थात दुःख का नाश हो सकता है। चतुर्थ आर्य सत्य – दुःख निरोगमिनी प्रतिपद् अर्थात दुःखनिरोध का मार्ग।     वृद्ध, रोगी एवं मृत व्यक्ति को देखकर बुद्ध सर्वस्व दुःख की अनुभूति हुई और उन्होंने दुनिया के लोगों को कहा कि “हमारी अनादिकाल से चली आने वाली इस महायात्रा में हमने जीतने आँसू बहाए है वह चार महासागरों के ज

बौद्ध दर्शन की चार प्रमुख शाखाएं / Four Major Branches of Buddhist Philosophy

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  बौद्ध दर्शन की चार प्रमुख शाखाएं / Four Major Branches of Buddhist Philosophy बौद्ध दर्शन की चार प्रमुख शाखाएं / Four Major Branches of Buddhist Philosophy     बौद्ध दर्शन का 4 शाखाओं में जो वर्गीकरण हुआ है इसके पीछे दो प्रश्न विद्यमान हैं , एक अस्तित्व संबंधीय और दूसरा ज्ञान संबंधी। अस्तित्व संबंधित प्रश्न यह है कि , मानसिक या बाह्य कोई वस्तु है या नहीं ? इस प्रश्न के तीन उत्तर दिए गए हैं - पहला माध्यमिकों के अनुसार कि ‘मानसिक या बाह्य किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। सभी शून्य है’। अतः ये शून्यवादी के नाम से प्रसिद्ध हैं। दूसरा योगाचारों के अनुसार ‘मानसिक अवस्थाएं या विज्ञान ही एक मात्र सत्य है। बाह्य पदार्थों का कोई अस्तित्व नहीं है’। अतः योगाचार विज्ञानवादी के नाम से प्रसिद्ध है। तीसरा , कुछ बौद्ध यह मानते हैं कि ‘मानसिक तथा बाह्य सभी वस्तुएं सत्य हैं। अतः यह वस्तुवादी हैं’। ये सर्वास्तिवादी के नाम से प्रसिद्ध हैं। बाहरी वस्तुओं के ज्ञान के लिए क्या प्रमाण है ? सर्वास्तित्ववादी अर्थात जो वस्तुओं की सत्ता को मानते हैं इस प्रश्न के दो उत्तर देते हैं। कुछ जो सौत्रांतिक के नाम से प्रस

बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya)

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  बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya) बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya)      महात्मा बुद्ध के अनुयायियों की संख्या आगे चलकर बहुत बढ़ गई और ये कई संप्रदायों में विभक्त हो गए। धार्मिक मतभेद के कारण बौद्ध धर्म की दो शाखाएं कायम हुईं जो हीनयान तथा महायान के नाम से प्रसिद्ध हैं। हीनयान का प्रचार भारत के दक्षिण में हुआ। इसका अधिक प्रचार श्रीलंका थाईलैंड में है। पालि त्रिपिटक ही हीनयान के प्रधान ग्रंथ हैं। महायान का प्रचार अधिकतर उत्तर के देशों में हुआ है , इसके अनुयाई तिब्बत , चीन तथा जापान में अधिक पाए जाते हैं। महायान का दार्शनिक विवेचन संस्कृत में हुआ है। अतः इसके ग्रंथों की भाषा संस्कृत है।     बुद्ध निर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद वैशाली में संपन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर (स्थविरवादी) भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को पापभिक्खु कह कर संघ से बाहर निकाल दिया था। उन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को महासांघिक और थेरवादियों को हीनसांधिक नाम दिया। जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण किया। थेरवाद से महायान संप्रदायों के क्रमशः विकास में कई शताब्दियाँ लगी

बौद्ध दर्शन / Buddhist philosophy

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बौद्ध दर्शन / Buddhist philosophy बौद्ध दर्शन / Buddhist philosophy      बौद्ध दर्शन का परिचय बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बुद्ध थे जो बचपन में सिद्धार्थ कहलाते थे। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में हिमालय तराई के कपिलवस्तु नामक स्थान में इनका जन्म हुआ था। जन्म-मरण के दृश्यों को देखने से उनके मन में विश्वास पैदा हुआ कि संसार में केवल दुःख ही दुःख है। अतः दुःख से मुक्ति पाने के लिए इन्होंने सन्यास ग्रहण किया। सन्यासी बन कर इन्होंने दुःखों के मूल कारणों को तथा उनसे मुक्त होने के उपायों को जानने का प्रयास किया। बुद्ध का समय ईसा पूर्व छठी शताब्दी कहा जाता है। उनके जन्म का वर्ष बौद्ध परंपरा अनुसार लगभग 624 ईसा पूर्व तथा अन्य विद्वानों के अनुसार 566 ईसा पूर्व के आसपास होना चाहिए। किंतु यह सिद्ध है कि भगवान बुद्ध का महाभिनिष्क्रमण (गृह त्याग और परिव्राजकत्व) से लेकर महापरिनिर्वाण तक का समय छठी सदी ईसा पूर्व है। संन्यास के बाद 6 वर्षों की कठिन तपस्या और साधना के बाद लगभग 35 वर्ष की आयु में गया के समीप बोधि वृक्ष के नीचे अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाले ज्ञानसूर्य का साक्षात्कार कर ' सम्यक् संबुद्ध '